Saturday 4 February 2012

इतस्तत:

           गॉंवों की कहानियॉं

अपना भारत देश, सही में, गॉंवों का मतलब देहातों का देश है| भारत को सही अर्थ में समझना हो तो देहात और वहॉं का लोकजीवन देखना चाहिए| मुंबई या दिल्ली देखकर सच्चे भारत का परिचय नहीं हो सकता|
इस नए वर्ष के आरंभ में दिल्ली से प्रकाशित होने वाले ‘संडे इंडियन’ इस समाचारपत्र ने, जो वार्षिक अंक प्रकाशित किया, वह भारत में के गॉंवों की विभिन्नता वर्णन करने के लिए है| अनेक गॉंवों की उसमें जानकारी है| वह जैसी रंजक है, वैसी उद्बोधक भी है| उसमें के ही कुछ नमूने|
(अ) उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में ‘गमहर’ नाम का एक गॉंव है| नाम अच्छा है| ‘गम’ मतलब दु:ख और ‘हर’ मतलब हरण करने वाला| इस दु:ख दूर करने वाले गॉंव की जनसंख्या ८० हजार है! फिर भी वह गॉंव ही है| कारण, वहॉं ग्राम पंचायत है| इस गॉंव की विशेषता यह है कि, इस गॉंव में के हर घर में का कोई ना कोई व्यक्ति सेना में भरती है|
(आ) पंजाब में ‘खरोडी’ नाम का एक गॉंव है| वह शायद भारत में का सबसे अमीर गॉंव होगा| कारण, वहॉं के अधिकांश लोग, अमेरिका या कॅनडा में रहते है| लेकिन पैसे गॉंव में के अपने पालकों या पाल्यों को भेजते है|
(इ) कर्नाटक में के ‘मत्तूर’ गॉंव का उल्लख भी इस ‘संडे इंडियन’ में है|  मैंने इसी स्तंभ में ‘मत्तूर’ का परिचय दिया था| कुछ वर्ष पूर्व, एक दिन इस गॉंव में मेरा मुकाम था| संपूर्ण गॉंव संस्कृत बोलता है| खेती में काम करनेवाले मजदूर भी संस्कृत जानते है| कारण, उनका मालिक उनके साथ संस्कृत में ही बात करता है| जिस घर में मेरा मुकाम था, उस घर में की महिलाएँ भी आपस में संस्कृत में ही बात करती थी| मुझे थोडा-बहुत संस्कृत समझ आने के कारण, मुझे उनके घर वास्तव्य करने में कोई परेशानी नहीं हुई|
(ई) महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में के ‘शिराळा’ गॉंव का भी नाम उसमें है| आपको पता ही होगा कि वहॉं के लोग सॉंप से डरते नहीं| नाग पंचमी के दिन वहॉं नागों की प्रदर्शनी होती है, और खेल भी होते है, इन्हे देखने के लिये बड़ी भीड़ लगती है| ऐसी जानकारी है कि, अब प्राणी-सुरक्षा योजना के अंतर्गत सर्पक्रीडा पर बंदी लगाई गई है|

   ... और यह एक किसान की कहानी

इस किसान का नाम है श्रीनिवास मूर्ति| आयु ३८ वर्ष| उसके गॉंव का नाम है सिद्दमहुंडी| उसकी विशेषता यह है कि, वह दो सौ प्रकार की जातियों के धान के बीज तैयार करता है| उसे यह प्रेरणा मिली, पुरी के जगन्नाथ मंदिर से| इस मंदिर में, ऐसी परिपाटी है कि, भगवान को भोग चढ़ाने के लिए पकाया जानेवाला भात (चावल) रोज अलग प्रकार (जाति) का होता है| मतलब ३६५ प्रकार (जाति) के चावल वहॉं के लोगों का पता है| श्रीनिवास मूर्ति कहता है, ‘‘इस घटना ने मेरी आँखें खोेल दी| हमारी यह देसी जातियॉं ही हमारा उद्धार कर सकेगी|’’
२६ दिसंबर २०११ के, दिल्ली से प्रकाशित होनेवाले ‘पायोनियर’ इस अंग्रेजी दैनिक में इस किसान के बारे में जानकारी प्रकाशित हुई है| उसका यह सारांश -
श्रीनिवास मूर्ति ने धान की ३५० से अधिक जाति का संग्रह किया है| यह सब देसी है और उनके बीज वह किफायती भाव से किसानों को देता है| वो कहता है, ‘‘मैं नैसर्गिक खेती करता हूँ और सेन्द्रीय खाद का ही उपयोग करता हूँ| हमने, हमारे देसी बिजों की रक्षा करनी चाहिए हितसंबंधि लोगों के सतत के प्रचार के कारण हमारी अनेक देसी जातियॉं नष्ट हुई है| मैंने अनेक प्रान्तों में घूमकर वहॉं की जाति के बीज प्राप्त किए है और उन पर प्रयोग कर कुछ नई जातियॉं भी खोजी है|’’
श्रीनिवास मूर्ति बड़ा जमीनदार नहीं| उसका बिजों का प्रयोग-क्षेत्र केवल डेढ एकड़ का है| इस छोटे क्षेत्रफल में, वह दो सौ जाति के बीज तैयार करता है| इन जातियों में प्रखर धूप सहने वाली जातियॉं है, उसी प्रकार अति बारिश में भी फसल देनेवाली जातियॉं है| उसने २००७ से यह कार्य शुरू किया है और अब वह इस विषय का तज्ञ बन गया है| किसानों के सब प्रश्‍नों के वह ठीक तरह से उत्तर देता है और बताता है कि, निरंतर कृषि विकास (सस्टेनेबल डेव्हलपमेंट) के लिए देसी जाति और देसी खेती यही एकमात्र सफल उपाय है| उसे ‘सहज समृद्धि’ इस अशासकीय सेवा संस्था की भी सहायता मिली है| 
  
 समाज परिवर्तन का एक शुभ संकेत

युगानुसार हर समाज को बदलना ही पड़ता है| जो बदलते नहीं और किसी विशिष्ट काल बिंदु पर रूक जाते है वे नष्ट हो जाते है| हमारा हिंदू समाज हमारी हिंदू संस्कृति के साथ आज भी कायम है, इसका कारण, हमने हमारे चरित्र में कालानुरूप बदल किए है| हमने शाश्‍वत क्या, युगानुकूल क्या और अपवादात्मक क्या इसका नित्य विवेक किया है| इसे ही शाश्‍वत धर्म, युगधर्म और आपद्धर्म ऐसे पुराने नाम है|
यहॉं यह बाताना है कि, आद्य शंकराचार्य ने जो चार मठ, भारत की चार दिशाओं में, अपने देश की एकसंधता जनमानस पर बिंबित करने के लिए स्थापन किए, उनमें का आद्य मठ कर्नाटक में के शृंगेरी का है| वहॉं शिवानंद नाम के एक दलित युवक को ब्रह्मचारी व्रत की मतलब संन्यास की दीक्षा दी गई है| ब्राह्मणत्व जन्म से नहीं आता, वह गुण एवं कर्म के द्वारा प्राप्त होता है, ऐसा हम शास्त्रों में पढ़ते है| लेकिन उसे व्यवहार में क्वचित ही लाते है| यह अनूठा कार्य शृंगेरी मठ ने किया है|
शिवानंद, जन्म से ‘पराया’ जाति का है| यह एक अस्पृश्य जाति है| वो मवेलीकारा गॉंव का है| यह गॉंव आद्य शंकाराचार्य की जन्मभूमि के, केरल में के, कलाडी गॉंव से करीब सौ किलोमीटर दूर है| उसकी व्यावहारिक शिक्षा प्री-युनिवर्सिटी तक हुई है| उसके बाद उसने वेदाभ्यास किया| उपनिषदों का भी अभ्यास किया| आचार्य नरेन्द्र भूषण से उसने यह शिक्षा प्राप्त की| शृंगेरी मठ की ओर से उसे सन्यास दीक्षा दी गई है| हो सकता है की आगे चलकर वो किसी मठ का अधिकृत शंकराचार्य भी बनेगा|          
यह हिंदू समाज में ही हो सकता है| हमारे गॉंव में तो पौराहित्य करने वाला कोई भी ब्राह्मण जाति का नहीं| अन्य जाति में का एक व्यक्ति वास्तु, विवाह आदि धार्मिक कार्यक्रम कराता है| अब अनेक वेद-विद्यालयों में भी सब वर्ण के लोगों को वेद-संहिता पढ़ाई जाती है|

...मेघालय में

मेघालय हमारे देश में का अति पूर्व में बसा एक राज्य है| छोटा ही राज्य| २००१ की जनगणना के अनुसार मेघालय की जनसंख्या केवल २३ लाख १८ हजार, मतलब हमारे आज के नागपुर की जनसंख्या से भी कम| इनमें बहुसंख्य ईसाई है| शायद ८५ प्रतिशत से अधिक| इसलिए उनका एक अलग राज्य बना! उसके पहले मेघालय असम प्रान्त का एक जिला था| मेघालय में शिलॉंग यह बड़ा शहर है| वही उसकी राजधानी है| शिलॉंग, पहले मतलब १९७२ के पूर्व, संपूर्ण असम की राजधानी था| २१ जनवरी १९७२ को, मेघालय का नया राज्य बना, और शिलॉंग उसकी राजधानी बनी|
यहॉं के ईसाई लोग ‘ऑटोमन फेस्टिवल’ मनाते है| यह संगीत, नृत्य और आनंद का त्यौंहार है| इस वर्ष, वह त्यौहार रविवार को आया है| ईसाई उपासना-तंत्र में रविवार को चर्च में जाकर प्रार्थना करनी होती है| उस दिन किसी ने भी काम नहीं करना होता है| हमारे देश पर अंग्रेजों का राज होने के कारण और वे ईसाई होने के कारण ‘रविवार’ छुट्टी का दिन तय किया गया| वह प्रथा आज भी चल रही है| ईसाई पुराण बताता है कि, ईश्‍वर ने छ: दिन सृष्टि निर्माण की| फिर उसे लगा एक दिन विश्रांती ले| वह रविवार था| इसलिए वह सब के लिए छुट्टी का दिन निश्‍चित हुआ|
मूल विषय यह है की आनंद मनाने का त्यौहार रविवार को आया; और चर्च के सूत्रधारों ने पत्रक निकाला कि, इस वर्ष यह त्यौहार न मनाए| रविवार प्रार्थना का दिन है|
लेकिन यह फतवा मेघालयवासीयों को पसंद नहीं पड़ा| इसे मानेंगे नहीं, ऐसा उन्होंने तय किया| अनेक समाजनेता सामने आए और उन्होंने धर्मगुरुओं के इस अकारण हस्तक्षेप का पत्रक निकालकर तीव्र निषेध किया| ‘शिलॉंग प्रेस क्लब’ ने इस विषय पर एक परिसंवाद भी आयोजित किया था| इसके लिए चर्च के नेताओं को भी पाचारण किया गया था| लेकिन उनमें से कोई भी नहीं आया| मेघालय के भूतपूर्व गृहमंत्री रॉबर्ट लिंगडोह ने भी चर्च के आदेश की निंदा की|
इसके पहले यह त्यौहार कभी भी रविवार को नहीं आया था, ऐसा नहीं| २००६ में आया था| तब चर्च ने दबाव लाकर त्यौहार मनाने का दिन बदलने के लिए बाध्य किया था| हमारे आदरणीय शरद पवार की राष्ट्रवादी कॉंग्रेस मेघालय में की एक शक्तिशाली राजनीतिक पार्टी है| हमारी सार्वभौम लोकसभा के भूतपूर्व सभापति श्री संगमा राकॉं के नेता है| (फिलहाल वे किस राजनीतिक पार्टी में है यह मुझे निश्‍चित पता नहीं|) इस राकॉं की युवा शाखा ने तब यह त्यौहार मनाने के लिए प्रखर विरोध किया था| ‘मेघालय यह ख्रिश्‍चन स्टेट है’, ऐसी घोषणा करने तक भी उनकी पहुँच गई थी| तथापि, वहॉं भी नवपरिवर्तन की हवाएँ चलने लगी है| २००६ में जो संभव नहीं हुआ वह २०११ में संभव हो सका है| रविवार होते हुए भी ‘ऑटोमन फेस्टिवल’ धडाके के साथ मनाया गया| परिवर्तन के इन पुरस्कर्ताओं का अभिनंदन करना चाहिए|
     घाना में हिंदू धर्म

‘घाना’ यह मध्य आफ्रीका में का देश है| नायजेरिया के पश्‍चिम में| जनसंख्या करीब अढाई करोड| ईसाईयों की संख्या करीब ७० प्रतिशत| उसके बाद मुस्लिम १६ प्रतिशत| शेष में अन्य|
इस घाना में एक अनोखी बात हुई| घानावासीयों में के एक धर्मगुरू ‘इसेल’ने हिंदू धर्म का स्वीकार किया| स्वामी कृष्णानंद सरस्वती इस संन्यासी ने उन्हें १९७६ में संन्यास-दीक्षा दी और फिर इसेल ने हिंदू धर्म के प्रसार का व्रत ही लिया| ७० के दशक में घाना में के हिंदूओं की संख्या पूरी २५ भी नहीं थी| वह अब तीन हजार हुई है| इसेल ने एक मठ की भी स्थापना की है और वह मठ हिंदू धर्म प्रसार का काम कर रहा है| तीन हजार यह संख्या बहुत बड़ी है, ऐसा नहीं| लेकिन शुरुवात हुई है, और यह प्रेरणा अन्यत्र भी फैल रही है| घाना की पूर्व सीमा से सटे ‘टोगो’ इस देश में भी हिंदू धर्म पहुँचा है|

गोपालरत्नम् का गीता-प्रचार
   
गोपालरत्नम्| एक व्यक्ति का नाम| उन्होंने एम. टेक. की पदवी ली है| सहज ही उन्हें अच्छे खासे वेतन की नौकरी मिल सकती थी| लेकिन वे बने संघ के प्रचारक| १४ वर्ष वे संघ के प्रचारक रहे| फिर उन्होंने वह काम भी छोडा और श्रीमद्भगवद्गीता के प्रचार का काम आरंभ किया| दाढी रखने के कारण वे किसी साधू के समान दिखते है| अपना शेष जीवन गीता का प्रचार करने में लगाना उन्होंने तय किया है| फिलहाल वे तामिलनाडू के सुप्रसिद्ध कोईमतूर शहर के परिसर में घूम रहे है|
उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होंगी, ऐसा तर्क करने की गुंजाईश है| वे मारुति अल्टो कार से घूमते है| एक गॉंव में वे तीन दिन मुकाम करते है और तीन दिन गीता पर प्रवचन करते है| उनके प्रवचन के विषयों का क्रम भी निश्‍चित होता है| पहले दिन ‘गीता और व्यक्ति’; दूसरे दिन ‘गीता और परिवार’ और तीसरे दिन ‘गीता और समाज’ इस प्रकार प्रवचन के विषय होते है|
उनके इस उपक्रम का नाम है 'In search of Chandragupta' मतलब चंद्रगुप्त के शोधार्थ! अपने इस उपक्रम में उन्हें अठाराह युवक, शिष्य कहे, भक्त कहे, मिले है| इन सब ने दारू, जुवा और दहेज कभी भी न स्वीकारने की शपथ ली है| ये युवक सामाजिक समास्याओं की जानकारी और भान रखते है| वे रेशन कार्ड, गॅस कनेक्शन, मतदाता पहचानपत्र, वृद्धों को पेंशन मिला देना आदि कामों में लोगों की सहायता करते है|
राजनीति यह भी समाज-जीवन का एक अविछीन्न भाग है| गोपालरत्नम् के ये भक्त राजनीति में भी भाग लेते है| वे चुनावों से भी अलिप्त नहीं| गत दिसंबर में हुए कोईमतूर जिले में के जिला परिषद चुनाव में उनमें से कुछ खड़े भी हुए थे| चार चुन के भी आए| एक ने तो, द्रमुक, कॉंग्रेस, अद्रमुक इन तगडे पार्टियों के उम्मीदवारों को धूल चटाकर मेट्टूपालयम् इस न. प. का अध्यक्षपद भी प्राप्त किया| गोपालरत्नम् कहते है कि, शांति से और योजनाबद्ध पद्धति से कार्य किया तो वह लोगों को पसंद आता है| यह शिक्षा उन्हें संघ की कार्यपद्धति से मिली, ऐसा वे कबूल भी करते है|

- मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

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