Monday 27 February 2012

झूठे, भ्रष्ट और संविधान से इमान न रखनेवाले

झूठें, भष्ट और संविधान की ऐसी तैसी करनेवाले, इन विशेषणों से आज कॉंग्रेसवालों का वर्णन किया जा रहा है| ये तीनों उपाधी, कॉंग्रेवालों ने स्वकतृत्व से प्राप्त की है| इसके साथ और कोई उपाधि जोडनी ही हो तो, बेशरम यह उपाधि जोडी जा सकती है| वह भी, उन्होंने स्वयं ही हासिल की है| इन गुण-विशेषताओं के कुछ नमूने देखने लायक है|

चुनाव आयोग

चुनाव आयोग एक मान्यता प्राप्त संस्था है| कानून ने उसे राजमान्यता प्रदान की है ही; लेकिन अपनी कृति से आयोग ने जनमान्यता भी प्राप्त की है| जैसे, हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय को जनादर प्राप्त हुआ है, वैसे ही चुनाव आयोग को भी प्राप्त हुआ है| इस आयोग का सम्मान और दर्जा बढ़ाने का कार्य श्री शेषन इस अधिकारी ने प्रारंभ किया था| उनके बाद आये अधिकारियों ने भी वह जारी रखा| विद्यमान चुनाव आयुक्त श्री कुरेशी ने भी अपनी संस्था का गौरव बढ़ाया है| लेकिन इस आयोग की नि:पक्षपाति नीति कॉंग्रेसवालों से सही नहीं जा रही| इस आयोग ने चुनाव के समय के लिए एक आचारसंहिता निश्चित की है| इस आचारसंहिता का अंग्रेजी नाम ‘मॉडेल कोड ऑफ कॉंडक्ट’ है| शब्दश: इसका अनुवाद होगा ‘आदर्श आचारसंहिता’, जिसका पालन चुनाव में उतरे सब प्रत्याशियों और सब पार्टिंयों ने करना चाहिए| इस आचारसंहिता का एक नियम यह है कि, चुनाव प्रचार की कालावधि में, सत्तासीन व्यक्तियों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए या अपनी ओर मोडने के लिए नए आश्वासन नहीं देने चाहिए अथवा नई कृति नहीं करनी चाहिए| तुम्हें जो कुछ करना है, वह घोषणापत्र में लिखें|

गैरजिम्मेदार मंत्री

यह नैतिकता का एक सादा नियम है| लेकिन केन्द्र सरकार के मंत्रियों ने ही उसे पैरों तले रौंदने का बीडा उठाया है| सलमान खुर्शीद कानून मंत्री है| परंतु वे ही बेकायदा वर्तन कर रहें है| ओबीसी के लिए आरक्षित २७ प्रतिशत कोटे में ४॥ प्रतिशत मुसलमानों को आरक्षण दिया जाएगा, ऐसी कॉंग्रेस की नीति है| वह कैसे संविधानविरोधी है, इसकी चर्चा बाद में करेगे| लेकिन खुर्शीद साहब ४॥ प्रतिशत से खुश नहीं है, या इस ४॥ की लालच से मुस्लिम व्होट मिलेगे नहीं, ऐसा उन्हें लगता होगा| इसलिए उन्होंने मुस्लिमों को ९ प्रतिशत आरक्षण कॉंग्रेस देगी ऐसा घोषित किया| यह चुनाव आयोग ने जारी की आचारसंहिता के विरुद्ध है, इसका उन्हें निश्चित ही अहसास है इसलिए वीरता का दिखावा करते हुए उन्होंने कहा कि, आयोग ने मुझे फॉंसी दी, तो भी यह कहूँगा ही| चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति करते है| इसलिए आयुक्त श्री कुरेशी ने राष्ट्रपति से गुहार लगाई| राष्ट्रपति ने उनका पत्र प्रधानमंत्री के पास भेजा| शायद, उन्होंने खुर्शीद साहब के कान मरोडे होगे| उसके बाद उनका दिमाग ठिकाने आया और फिर उन्होंने आयोग से क्षमा-याचना की| आयोग ने उनकी क्षमा-याचना स्वीकार कर मामला समाप्त किया| लेकिन, केन्द्र सरकार में के ही दूसरे एक मंत्री बेनीप्रसाद वर्मा को भी सुरसुरी हुई| यह सुरसुरी स्वयंभू थी या परपुष्ट थी यह निश्चित पता चलने का कोई मार्ग नहीं| लेकिन शायद उसे ‘ऊपर’ से ही प्रेरणा मिली होगी| अन्यथा खुर्शीद के बेमुर्वतखोरी की पुनरावृत्ति वर्मा ने न की होती| उन्होंने भी वही मुस्लिमों के लिए आरक्षण बढाने की घोषणा की| उन्हें भी लगा होगा की ४॥ प्रतिशत की लालच, मुसलमानों को कॉंग्रेस की ओर मोडने के लिए काफी नहीं| इसलिए उन्होंने ने भी वही हिम्मत की और आयोग के रोष के पात्र बने| झटका लगने के बाद वर्मा ने स्पष्टीकरण दिया की, उनकी जबान कुछ फिसल गई थी! लेकिन दुनिया समझ चुकी है कि यह कोई अपघात नहीं, यह एक सोची समझी योजनाबद्ध चाल है| चुनाव आयोग ने उनके उपर क्या कारवाई की, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है|

सरकार का इरादा

सलमान खुर्शीद या बेनीप्रसाद वर्मा ये व्यक्ति ही इस मुद्दे की जड होगे, ऐसा लगता नहीं| सरकार का ही इरादा चुनाव आयोग को सबक सिखाने का दिखता है| चुनाव आयुक्त, कॉंग्रेसी मंत्रियों को फटकार लगाते है क्या... फिर सरकार ने चुनाव आयोग को ही पंगु बनाने का निश्चय किया| आचारसंहिता, मतलब उसका पालन और उल्लंघन यह विषय ही आयोग की कार्यकक्षा से निकाल लेने की साजिश उसने रची| विशेष आपात्कालीन निर्णय लेने के लिए मंत्रिमंडल का एक छोटा समूह होता है| उसे ‘ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स’ कहते है| उसकी बैठक के लिए अधिकारी जो कार्यपत्रिका तैयार करते है, वह गोपनीय होती है| यह गोपनीय पत्रिका ‘इंडियन एक्सप्रेस’ इस अंग्रेजी दैनिक ने प्राप्त की और उसके बारे में २१ फरवरी के अंक में प्रमुखता से समाचार प्रकाशित किया| सरकार हडबडा गई| इस विशेष मंत्रि समिति के तीन महनीय सदस्य, प्रणव मुखर्जी, सलमान खुर्शीद और कपिल सिब्बल ने तुरंत स्पष्टीकरण देकर, हमें इसकी जानकारी नहीं, ऐसा बताकर पल्ला झाड लिया| फिर दूसरे दिन के अंक में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ने, उस गोपनीय कार्यक्रम पत्रिका में का अंश ही उद्धृत किया| तब इन महनीय मंत्रियों को कैसा लगा होगा, यह बताया नहीं जा सकता| शायद कुछ भी लगा नहीं होगा कारण इसके लिए शर्म आनी चाहिए| जो उसे घोल के पी चुके होते है, वे सदैव सुखी होते है|

फिजूल उपद्व्याप

इस विषयपत्रिका में के अंश का आशय, चुनाव आयोग को जो अधिकार है, वह निकालकर एक नए कानून के अंतर्गत प्रस्थापित यंत्रणा को सौपना, यह है| मतलब किसी को शिकायत करनी होगी, तो उसे न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा; और न्याय होने में विलंब कैसे लगाया जा सकता है, यह चालाक वकील जानते ही है| मुंबई बम हमले के मामले में जीवित पकडा गया एक हत्यारा अपराधी कसाब, अभी भी जेल में दावत उडा रहा है| उसे निचली अदालत ने फॉंसी की सज़ा सुनाई है| यह नई व्यवस्था आने के बाद खुर्शीद-वर्मा और उनकी औलाद, चुनाव आयोग को ठेंगा दिखाने के लिए आज़ाद हो जाएगी| सरकार अब कह रही है कि हमारा ऐसा कोई विचार ही नहीं था और न अब है| लेकिन यह सफेद झूठ है| झूठ बोलने की इन लोगों को इतनी आदत हो गई है कि, अब वह उनका एक गुणविशेष बन गया है| जरा याद करे, टू जी घोटाला मामला| सरकारी अधिकारिणी कहती है कि इसमें पौने दो लाख करोड का घोटाला है| इस पर सिब्बल महोदय - जो सरकार में मंत्री है - की प्रतिक्रिया थी कि घोटाला शून्य रुपयों का है| ए. राजा जेल में है; लेकिन निगोडे सिब्बल मंत्रिमंडल में विराजमान है| लेख की मर्यादा ध्यान में रखकर मैं कॉंग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने तोडे तारे छोड देता हूँ|

भ्रष्टाचार

कॉंग्रेसवालों के भ्रष्टाचार के बारे में कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं| राष्ट्रकुल क्रीडा स्पर्धा में हुए भ्रष्टाचार के मामले में कॉंग्रेस के सांसद और कॉंग्रेस पार्टी पुणे के सर्वोसर्वा कलमाडी तिहाड जेल में फँसे है| फिलहाल वे पॅरोल पर या जमानत पर बाहर है, यह बात अलग है| लेकिन उनके स्थाई मुक्काम का स्थान तिहाड जेल ही है| ए. राजा तो अभी भी जेल में ही है| वे भी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री ही थे| कॉंग्रेस के नहीं थे, लेकिन कॉंग्रेस के मित्र थे| ए. राजा की पार्टी अभी भी कॉंग्रेस की मित्र ही है| साथी के शील से व्यक्ति का शील पहचाना जा सकता है, इस अर्थ की एक अंग्रेजी कहावत, सब को पता होगी ही| तो बात यह है कि, यह राजा कॉंग्रेस के साथी| उनके करीब के साथी है पी. चिदम्बरम्| वे अभी भी मंत्रिमंडल में है| और जिन कागजों पर राजा के हस्ताक्षर है, उन्ही कागजों पर चिदम्बरम् साहब के भी हस्ताक्षर है, ऐसा बाताया जाता है| निचली अदालत में वे छूट गये है| लेकिन आगे नहीं बचेंगे| न्याय के क्षेत्र में भी ‘देर’  हो सकती है ‘अंधेर’ नहीं|

नए नमूने

यह हुई पुरानी बातें| अब कुछ नए चमत्कार भी देखें| महामहिम राष्ट्रपति के पुत्र रावसाहब शेखावत अमरावती के विधायक है| उनके पास भेजे गए एक करोड रुपये पुलीस ने पकडे है| यह पैसे लेकर जानेवाली गाडी पुलीस ने कब पकडी पता है? रात को डेढ बजे पकडी! मध्यरात्रि के घने अंधेरे में इतनी बडी राशि लाना-ले जाना कौन करता है, यह अलग से बताने की आवश्यकता है? यह सभ्य लोगों का व्यवहार नहीं हो सकता| चोर, डकैतों की यह रीत होती है| और यह गाडी कहॉं से आई? मंत्री राजेन्द्र मुळक की ओर से| ये मुळक, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री है| अब बताया जा रहा है कि, यह कॉंग्रेस पार्टी का फंड है| यह झूठ है| राजेन्द्र मुळक के पास पार्टी की कौनसी जिम्मेदारी है? वे पार्टी के अध्यक्ष है या कोषाध्यक्ष? और पार्टी का पैसा खुलेआम क्यों नहीं भेजा जाता? उसके लिए मध्यरात्रि का अंधेरा क्यों चुना जाता है? एक करोड रुपये कोई छोटी मोटी राशि नहीं| वह नगद कैसे मिलती है? इतनी बडी राशि के व्यवहार, कॉंग्रेस पार्टी में क्या नगद होते है? चेक से व्यवहार करने की सभ्य रीत से क्या कॉंग्रेस अपरिचित है?

झूठ

बडी-बडी कार्पोरेट संस्थाएँ राजनीतिक पार्टिंयों को पैसे देती है| २००९-२०१० इस वार्षिक वर्ष में किस कार्पोरेट संस्था ने, किस राजनीतिक पार्टी को, कितने करोड रुपये फंड दिया, इसके आँकडे मेरे पास है| अर्थात् उन्हीं संस्थाओं के, जिन्होंने एक करोड या उससे अधिक राशि दी| उसमें कॉंग्रेस का पहला क्रमांक है| यह अस्वाभाविक भी नहीं| लेकिन यह पैसा निश्चित चेक से ही आया होगा| फिर उसका वितरण चेक से क्यों नहीं किया गया? रावसाहब शेखावत का पुलीस ने जबाब लिया| राजेन्द्र मुळक का बाकी है| बताया जाता है कि उन्हें समय नहीं मिला! किस शासकीय काम में वे लगे थे? क्या वे राज्य के मुख्यमंत्री है कि उन्हें फुरसत नहीं मिलती? वे एक सामान्य राज्यमंत्री है| उन्हें समय नहीं मिलने के लिए शासकीय काम यह कारण नहीं हो सकता| कारण एक ही हो सकता है कि, जबाब के लिए सबूत एकत्र करना! क्या ऐसे लोग मंत्रिपद पर रहने के लायक है?  एक समाचार या अफवा कहे ऐसी है कि, पैसा दो गाडियों में से आया था| उसमें की एक छूट गई| मतलब उसमें भी एक करोड होगे| मतदाताओं को घूस देने के लिए इस राशि का उपयोग हुआ या नहीं यह तो रावसाहब ही बता सकेंगे| ८७ सदस्यों की अमरावती महापालिका में कॉंग्रेस पार्टी ने २५ सिटें जीती| रावसाहब, पकडी गई गाडी सही सलामत आप तक पहुँचती, तो कॉंग्रेस की और कितनी सिटें बढ़ती? घूस देकर मत मिलानेवाली पार्टिंयॉं होगी और वैसे उनके कार्यकर्ता होगे, तो इस जनतंत्र को क्या अर्थ है| जनतंत्र सभ्य लोगों ने स्वीकार की हुई राजनैतिक प्रणाली है या लुटेरों के अधिकार में की प्रणाली है? अब अपेक्षा यहीं है की यह प्रकरण दबाया नहीं जाना चाहिए| उसमें बड़े-बड़े लोग लिपटे होने के कारण संदेह निर्माण होता है| और, यह राशि सरकार जमा होनी चाहिए| वह वैध पार्टी फंड था, इस पर कोई बच्चा भी विश्वास नहीं करेगा|

कृपाशंकर सिंह

और यह एक ताजा समाचार है| मुंबई कॉंग्रेस के अध्यक्ष का| कृपाशंकर सिंह का| मुंबई उच्च न्यायालय ने ही, २२ फरवरी को पुलीस कमिश्नर को आदेश दिया कि, उनके विरुद्ध फौजदारी मुकद्दमा दायर करे| उच्च न्यायालय ने, कृपाशंकर सिंह ने प्राप्त की अमीरी का वर्णन ‘कचरे से दौलत तक’ (From rags to riches) ऐसा किया है| इस संपत्ति का सारा ब्यौरा यहॉं देने का प्रयोजन नहीं| यह करोडो की संपत्ति है| केवल पॉंच-छ: वर्ष में जमा की है| यह सारी संपदा २००४ के बाद की है, मतलब केन्द्र और महाराष्ट्र में कॉंग्रेस पार्टी सत्ता में आने के बाद की है| न्यायालय ने उनकी और उनके परिवारजनों की अचल संपत्ति जप्त करने की भी सूचना की है और १९ अप्रेल तक पुलीस कमिश्नर से रिपोर्ट मांगी है| कॉंग्रेस पार्टी, कैसे लोगों से भरी है और कौन उसका संचालन करते है, यह इससे स्पष्ट होना चाहिए|

संविधान से बेईमानी

हमारा एक संविधान है| लिखित रूप में है| बहुत मेहनत से वह बनाया गया है| आखीर वह मानव की ही निर्मिति है| इस कारण उसमें त्रुटि संभव है| और, उसका उपयोग शुरू होने के बाद के समय में नई समस्याएँ भी निर्माण हो सकती है| इस कारण, संविधान अचल, अपरिवर्तनीय वस्तु मानी नहीं जाती| उसमें कालानुरूप, परिस्थिति के आनेवाले आव्हान ध्यान में रखकर, संशोधन किए जाते है| गत ६०-६२ वर्षों की अवधि में उसमें करीब सौ संशोधन हुए| एक विशिष्ट पृष्टभूमिपर हमारा संविधान तैयार हुआ| देश का विभाजन हुआ था| वह सांप्रदायिक आधार पर हुआ था| एक विशिष्ट संप्रदाय ने अपना पृथकत्व संजोकर रखा, विदेशी राजकर्ताओं ने उसके लिए उन्हें प्रोत्साहन दिया और उकसाया भी, और वह संप्रदाय मुख्य राष्ट्रीय प्रवाह के साथ न जुड सके इसके लिए भी अनेक कारस्थान किए| वह सफल हुए और हमारी मातृभूमि विभाजित हुई| दुबारा ऐसा होने की नौबत न आए इसलिए, अंग्रेज सरकार ने, मुसलमानों के लिए जो अलग आरक्षित मतदारसंघ रखे थे, वह हमारे संविधान निर्माताओं ने रद्द किए| सब को एक मत और हर मत का समान मूल्य यह निकष स्वीकार किया| वनों में रहनेवाले हमारे बंधू और अस्पृश्यता की वेदना जिन्हें हजारों वर्षों से सहनी पडी, केवल उनके लिए ही आरक्षण रखा - वह भी केवल दस वर्षों के लिए| लेकिन, अब ऐसा दिखता है कि, सत्ता प्राप्त करने के लिए, कॉंग्रेसवाले संविधान से बेईमान हो रहे है| वे मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग स्वीकार कर रहे है| सांप्रत आर्थिक और शिक्षा के क्षेत्र तक वह मर्यादित है| लेकिन उस मांग को राजनैतिक आयाम कभी भी मिल सकता है|
इसका अर्थ मुसलमानों में गरीब नहीं है, यह नहीं होता| उन्हें सुविधाएँ न दे, ऐसा भी कोई नहीं कहेगा| लेकिन उसका आधार आर्थिक होना चाहिए| सब के लिए आर्थिक निकष रखे| जाति-पंथ का विचार न कर सब ही गरीबों का भला होगा| आज भी अन्य पिछडे वर्गों में (ओबीसी) मुसलमानों में की कुछ जातियों का अंतर्भाव है ही| उन्हें वे सब सुविधाएँ प्राप्त है| लेकिन इसलिए की वे गरीब है| मुसलमान होने के कारण नहीं| कॉंग्रेस चाहती है कि उन्हें वह सुविधाएँ वे मुसलमान है इसलिए मिले| राहुल गांधी से लेकर खुर्शीद-वर्मा तक यच्चयावत् कॉंग्रेस के नेता, मुसलमानों का पृथकत्व कायम रखने के लिए कमर कस कर खड़े है| यह हमारे संविधान का घोर अपमान है| सांप्रदायिक आधार पर आरक्षण देने का कानून बनाया तो भी वह न्यायालय में नहीं टिकेगा, यह बात, ये लोग जानते है| लेकिन मतों की लालच में यह राष्ट्रघाती खेल वे खेल रहे है| उन्हें इसकी शर्म आनी चाहिए| मुसलमान और अन्य सब कथित अल्पसंख्य, राष्ट्रजीवन के प्रवाह से कैसे जोडे जाएगे, कैसे समरस होगे, इसका सब ने विचार करना चाहिए| उस दिशा में सरकार के कदम बढ़ने चाहिए| वह दिशा संविधान ने अपनी धारा ४४ में दिखाई है| सब के लिए समान नागरी कायदा बनाए ऐसा यह धारा बताती है| लेकिन देश को डुबोने निकले हुओं का उसकी ओर ध्यान नहीं| काश्मीर के लिए धारा ३७० क्यों? वहॉं मुसलमान बहुसंख्य है इसलिए| लेकिन यह धारा स्थायी नहीं| उसका अंतर्भाव ही अस्थायी, संक्रमणकालीन प्रावधान प्रकरण में किया है| काश्मीर का विशेष दर्जा संजोनेवाली इस धारा का काफी क्षरण भी हुआ है| लेकिन गत २५ वर्षों में एक इंच कदम भी आगे नहीं बढ़ा है| पंडित जवाहरलाल नेहरु ने २१ ऑगस्त १९६२ को, जम्मू-काश्मीर के एक कॉंग्रेस कार्यकर्ता पंडित प्रेमनाथ बजाज को लिखे पत्र में स्पष्ट कहा है कि, ‘जो करने का अवशिष्ट है वह भी किया जाएगा|’ उनके बाद आए राजकर्ताओं ने जो ‘अवशिष्ट’ था, उसमें का बहुत कुछ किया है| लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना शेष है| १९८६ के बाद गाडी वहीं अटकी है| दूरी बनाए रखनेवाली यह अस्थायी धारा, हटाने की बात तो दूर ही रही| लेकिन उसे स्थायी करने की ही चाल दिखाई देती है| सांप्रदायिक आधार पर आरक्षण का समर्थन हो अथवा समान नागरी कानून के संदर्भ में की निष्क्रियता, यह सब संविधान से ईमानदारी के निदर्शक नहीं है| लेकिन कॉंग्रेस को मुसलमानों को लालच दिखाकर अपनी ओर मोडना है| उसके लिए ही सच्चर कमेटी की रिपोर्ट है; उसके लिए ही अलग आरक्षण का समर्थन है| देश के फिर टुकड़े करने की यह चाल है| यह विन्स्टन चर्चिल और बॅ. जिना के फूँट डालने की राजनीति का अनुसरण है| जागरूक, देशभक्त नागरिक ही इन फूँट डालनेवालों को उनका स्थान दिखा दे, यह समय की आवश्यकता है|

- मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com

(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)

Sunday 19 February 2012

महाराष्ट्र में के महापालिका चुनाव के नतीजे

महाराष्ट्र में की दस महानगर पालिकाओं में १६ फरवरी को चुनाव हुए| उसके नतीजे दि. १७ को घोषित हुए| उन नतीजों से जो सर्वसामान्य निष्कर्ष निकलते है, उनकी ही चर्चा इस लेख में की जा रही है| महापालिकाओं के चुनाव के पूर्व, फरवरी को, महाराष्ट्र में की २७ जिला परिषद और उन जि. . के क्षेत्र में आनेवाले पंचायत समितियों के भी चुनाव हुए| उन चुनावों के नतीजों का परिणाम महापालिका के चुनाव पर हो, इसलिए, उसकी मत-गणना पहले करें, महापालिका के मत-गणना के ही साथ करें, ऐसी विनंति कुछ राजनैतिक दलों ने की थी| वह चुनाव आयोग ने मान्य की| इस कारण जि. . और पं. . के चुनाव के नतीजें भी दि. १७ को ही घोषित हुए| लेकिन उन नतीजों की बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हुई| मत-गणना भी बहुत धीमी चल रही थी| लेकिन महापालिका के चुनाव नतीजों की चर्चा खूब हुई और आगे भी कुछ दिन वह चलती रहेगी| इन हापालिका चुनावों को सब राजनीतिक दलों ने २०१४ में होनेवाले राज्य विधानसभा के चुनावों की रिर्हसल या सेमी फायनल की दृष्टि से देखा| इस कारण, अन्य चुनावों की तुलना में इस समय के चुनावों को बहुत महत्त्व आया|
कॉंग्रेस की फजीहत

इस चुनाव की एक मुख्य विशेषता यह रही कि, कॉंग्रेस के मनसूबें धूल में मिल गए| स्वयं मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने बड-चढ़कर इस चुनाव के प्रचार में भाग लिया| शिवसेना का नामोंनिशान मिटाने की, स्वयं के श्रेष्ठ पद को शोभा देने वाली, भाषा का उन्होंने प्रयोग किया| शिवसेना का दबदबा मुंबई और ठाणे इन महानगरों के क्षेत्रों में ही विशेष रूप से है| उसे समाप्त करने के लिए कॉंग्रेस ने पूरी तैयारी की| पुणे और पिंपरी-चिंचवड इन महापालिका क्षेत्रों में, कॉंग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए नकार देनेवाली राष्ट्रवादी कॉंग्रेस (राकॉं) के साथ, पार्टीं के कार्यकर्ताओं का तीव्र विरोध होने के बावजूद भी, मुंबई में कॉंग्रेस ने गठबंधन किया| कॉंग्रेस के नेताओं का अंदाज गलत था, ऐसा नहीं कह सकते| शिवसेना-भाजपा गठबंधन गत पंधरा वर्षों से मुंबई महापालिका में सत्ता में है| इस कारण, पूर्व पदाधिकारियों के बारे में नाराजी (ऍण्टी इन्कम्बन्सी फॅक्टर) यह कॉंग्रेस की दृष्टि से सबसे अधिक उपकारक घटक था| किसे भी स्वाभाविक ही लगेगा की, लोग नये प्रशासक चाहेंगे| इस घटक के साथ, राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की सशक्त उपस्थिति इस चुनाव में रहनेवाली थी| मनसे शिवसेना के मत खाएँगी इस बारे में किसी के मन में संदेह होने का कारण नहीं था| यह दो घटक ध्यान में रखकर ही पृथ्वीराज चव्हाण ने शिवसेना के सियासी समाप्ती की भविष्यवाणी की होगी| शिवसेना के पिछडने के बाद शिवसेना-भाजपा गठबंधन का पिछडना स्वाभाविक ही होता| फिर सत्ता के सूत्र कॉंग्रेस और राकॉं गठबंधन के हाथ आऐंगे ऐसा उनका अंदाज था| लेकिन मतदाताओं ने वह गलत साबित किया| शिवसेना, भाजपा और रिपब्लिकन पार्टी (आठवले गुट) के महागठबंधन ने २२७ सिटों में से १०७ सिंटें जीती| कॉंग्रेस को केवल ५० सिंटें ही मिल पाई| राकॉं तो केवल १८ सिटों पर ही समाधान करना पडा| मनसे ने २८ सिटें जीतकर अपनी ताकद दिखा दी| लेकिन इस ताकद का कॉंग्रेस-राकॉं गठबंधन को लाभ नहीं हुआ| शिवसेना-भाजपा महागठबंधन के, इस कुछ आश्चर्यजनक सफलता का विश्लेषण किया जा रहा है| रामदास आठवले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (रिपाइं) के साथ गठबंधन करने के कारण यह सफलता मिल पाई, ऐसी कुछ विश्लेषकों ने मीमांसा की है| उसमें काफी सच्चाई हो सकती है| लेकिन रिपाइं केवल दो ही सिटें जीत पाई| उसने २९ सिटों पर चुनाव लडा था| शिवसेना और भाजपा की जो मूल आधारभूत शक्ति है उसे विरोधी, अपेक्षा के अनुसार भेद नहीं पाए, यह सत्य है| इस कारण, इस गठबंधन के हातों में लगातार चौथी बार मुंबई महापालिका की सत्ता आई है| शरद पवार की भाषा में कहे तो, पैसे देनेवाली मुर्गी पुन: उसी मालिक के पास गई है| यह सच है की, २२७ सदस्यों की महापालिका में हागठबंधन के पास १०७ ही सिटें है| मतलब उन्हें और सात सीटों की आवश्यकता है| लेकिन यह आवश्यकता शिवसेना और भाजपा के विजयी विद्रोही पूरी कर देंगे| तात्पर्य महागठबंधन का वहॉं प्रशासन अटल है

ठाणे में भी ...

जो मुंबई में हुआ, वही ठाणे में भी हुआ| ठाणे महापालिका से भी शिवसेना-भाजपा की सत्ता समाप्त होगी, ऐसी संभावना व्यक्त की गई थी| लेकिन वह भी गलत साबित हुई| यहॉं मनसे की ताकद पर्याप्त नहीं थी| लेकिन शिवसेना-भाजपा गठबंधन के प्रत्याशियों को पराभूत करने की निश्चित ही थी| तथापि, वहॉं भी शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने सर्वाधिक मतलब ६२ सिटें जीती| इसमें शिवसेना का ५३ सिटों को बडा हिस्सा है| भाजपा के सदस्य है| यहॉं भी सत्तासीन होने के लिए उन्हें सदस्यों की आवश्यकता है| दस निर्दलीयों की संख्या से वह पूरी हो सकती है| नासिक में छगन भुजबल के दम पर सत्ता प्राप्त करने के सपने राकॉं देख रही थी| लेकिन उसकी निराशा हुई|

मनसे का प्रभाव

इस चुनाव की दूसरी विशेषता है मनसे ने दिखाई ताकद| मुंबई महापालिका में, मनसे के २८ प्रत्याशी चुनकर आए है| यह आँकडा राकॉं के प्रत्याशियों से अधिक है| नासिक महापालिका में तो मनसे सबसे बडी पार्टी चुनी गई है| कुल १२८ सदस्यों में मनसे के ४० सदस्य है| यह संख्या महापालिके के सत्तासूत्र हाथ में आने के लिए पहली नज़र में काफी नहीं, लेकिन अन्य पार्टिंयों की तुलना में वह लक्षणीय है|  संपूर्ण राज्य में शिवसेना-भाजपा का गठबंधन था| लेकिन नासिक अपवादभूत था| कारण कुछ भी हो, वहॉं उनका गठबंधन नहीं हो सका| वह हुआ होता तो चित्र निश्चित ही भिन्न होता और मुंबई-ठाणे की आवृत्ति नासिक में भी प्रकट होती| महापालिका के पदाधिकारी प्रत्यक्ष किस प्रकार के जोड-तोड से चुनकर आएगे, यह उत्सुकता का विषय है| क्या शिवसेना-भाजपा, मनसे को सत्ता में आने के लिए मदद करेंगे, यह एक उत्सुकता का प्रश् है| ्होंने विरोध नहीं किया और तटस्थ रहे, तो भी मनसे का काम बन सकता है|

पुणे की परिस्थिति

मुंबई-नासिक के समान ही पुणे में भी मनसे ने अपनी ताकद दिखाई है| १५२ सदस्यों में मनसे के २९ सदस्य है| पुणे में कॉंग्रेस को जबरदस्त धक्का बैठा है| पुणे की कॉंग्रेस मतलब सांसद सुरेश कलमाडी की कॉंग्रेस ऐसा समीकरण बन गया था| इस कारण, उन्हीं की पसंद के प्रत्याशी कॉंग्रेस का पंजालेकर खडे थे| कलमाडी, तिहाड जेल के मेहमान बने है| फिलहाल वे जमानत पर है और चुनाव के कुछ दिन पूर्व पुणे में आए है, फिर भी कॉंग्रेस को इसका लाभ नहीं मिला| राष्ट्रकुल क्रीडा स्पर्धा के आयोजन में के कलमाडी के भ्रष्टाचार का कॉंग्रेस को झटका लगा, ऐसा लगता है| कलमाडी और राकॉं के नेता तथा विद्यमान उपमुख्यमंत्री अजित पवार की बिल्कुल नहीं बनती| कलमाडी को सत्ता से दूर रखने के लिए ही पहले के कार्यकाल में राकॉं ने, कुछ समय के लिए ही सही, शिवसेना के साथ भी हाथ मिलाया था| उसे पुणे पॅटर्नकहा जाता है| बार पुणे पॅटर्नका स्वरूप राकॉं और मनसे ऐसा हो सकता है, ऐसा हुआ तो फिर पुणे में राकॉं का महापौर बन सकता है| वहॉं राकॉं के ५१ सदस्य चुनकर आए है| और मनसे के २९| १५२ सदस्यों के सभागृह में इस पॅटर्नका बहुमत हो सकता है|

पुणे में भाजपा को अपेक्षा के अनुसार सफलता नहीं मिली| वह केवल २६ सिटें जीत सकी| उसकी ५० सिटें जीतने की अपेक्षा थी, ऐसा कहा जाता है| विश्लेषकों का मत है कि, पुणे में भाजपा में तीव्र गुटबाजी है; इसका भाजपा को झटका लगा| पुणे भाजपा के अध्यक्ष पद पर मठकरी की नियुक्ति किए जाने के बाद, मामला बहुत चर्चा में आया था| भाजपा के ज्येष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे का रोष भी प्रकट हुआ था| आगे चलकर वह शांत हुआ, लेकिन नगर स्तर पर सौमनस्य निर्माण नहीं हो सका| भाजपा के प्रांतिक स्तर के नेताओं को इस स्थिति का गंभीरता से विचार करना होगा|

नागपुर में भगवा

नागपुर महापालिका पर फिर भाजपा-शिवसेना गठबंधन का झंडा फहराएगा यह निश्चित है लेकिन राजनीतिक निरीक्षकों को अपेक्षा थी कि भाजपा को इससे अधिक सफलता मिलेगी| अपने बुते पर भाजपा को ६२ सिटें मिली| मित्र पार्टी शिवसेना को और रिपाइं को | इस प्रकार इस गठबंधन की ७० सिटें होती है| कुल १४५ सिटें है| मतलब बहुमत के लिए और तीन सिटों की आवश्यकता है| वह तो निश्चित ही पूरी होगी| २००७ के चुनाव भी करीब यहीं स्थिति थी| फिर भी भाजपा शिवसेना गठबंधन का अधिकार पॉंच वर्ष ठीक चला| नागपुर लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत के : विधानसभा मतदार संघों में से चार क्षेत्रों में भाजपा के विधायक चुनकर आए है| इस पृष्ठभूमि पर भाजपा को कम से कम ७५ सिटें मिलेगी, ऐसी अपेक्षा थी| लेकिन वह पूरी नहीं हुई|

अन्य क्षेत्र

पिपंरी-चिंचवड में, राकॉं ने अपने बुते पर ८४ सिटें जीती है| १२८ सिटों की महापालिका में सत्ता काबीज करने के लिए यह संख्या काफी है| पॉंच वर्ष पूर्व यहॉं राकॉं को ६० सिटें मिली थी| उसमें चालीस प्रतिशत वृद्धि हुई है| यहॉं राकॉं का कॉंग्रेस के साथ गठबंधन नहीं था|

सोलापुर में कॉंग्रेस सबसे बडी पार्टी चुनकर आई है| १०२ सदस्यों के सभागृह में कॉंग्रेस के ४५ सदस्य है| यहॉं कॉंग्रेस और राकॉं स्वतंत्र रूप से लडे| लेकिन वे सत्ता के लिए एक हो सकते है| राकॉं को १६ सिटें मिली है| दोनों के साथ आने पर आवश्यक बहुमत होता है|

उल्हासनगर में शिवसेना भाजपा गठबंधन को ३० सिटें मिली है| यहॉं कुल ७८ सिटें है| कॉंग्रेस और राकॉं मिलकर २८ है| यहॉं मनसे नगण्य है| उसे केवल एक सीट मिली है| मतलब सत्ता की चाबी अपक्ष के हाथ में है| कारण उनकी संख्या १९ है| अर्थात् अपक्ष मतलब एकजूट गुट नहीं लेकिन उन्हें महत्त्व आया है, यह निश्चित| इस परिस्थिति में शिवसेना-भाजपा गठबंधन का महापौर चुनकर सकता है|

अमरावती में भी त्रिशंकु अवस्था है| कॉंग्रेस ने घूस देने के लिए एक कराडे रुपये लाए थे| वह, समय रहते ही पुलिस ने पकडने के कारण, कॉंग्रेस के काम नहीं सके| इसका अर्थ कॉंग्रेस ने मतदाताओं को घूस और लालच दी ही नहीं होगी, ऐसा नहीं होता| लेकिन कॉंग्रेस को फिर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली| ८७ सिटों की महापालिका में कॉंग्रेस को केवल २५ सिंटें मिली| कॉंग्रेस और राकॉं साथ मिले तो ही सत्ता उनके हाथ आएगी| संभवत: यही होगा| कॉंग्रेस से निष्कासित भूतपूर्व मंत्री सुनील देशमुख और भाजपा से निष्कासित भूतपूर्व विधायक जगदीश गुप्ता ने, महापालिका के लिए गठबंधन किया था| लेकिन इस गठबंधन को केवल सिटें मिली| उनको साथ लेकर किसी का भी भला नहीं होने का| इस कारण देशमुख-गुप्ता गठबंधन महापालिका में तो उपेक्षित ही रहेगा| शायद वह विसर्जित भी हो जाएगा|

अकोला महापालिका में भाजपा और कॉंग्रेस को समान मतलब १८-१८ सिटें मिली है| राकॉं को केवल | पिछली बार थी| मतलब कॉंग्रेस-राकॉं के पास २३ सिटें होती है| शिवसेना को सिटें मिली है| शिवसेना-भाजपा गठबंधन की २६ सिटें हेाती है| लेकिन बहुमत के लिए ३७ चाहिए| प्रकाश आंबेडकर की कॉंग्रेस के साथ बनती है| उन्हें कितनी सिटें मिली इसकी मुझे जानकारी नहीं है| लेकिन वे कॉंग्रेस के साथ जा सकते है| उस स्थिति में वहॉं कॉंग्रेस का महापौर चुनकर भी सकता है| २३ फरवरी को महापौर का चुनाव है|

हवाओं की दिशा

इस चुनाव ने एक महत्त्व की बात स्पष्ट की है कि मनसे की उपेक्षा नहीं की जा सकती| राज ठाकरे ने चुनावों के बारे में संतोष व्यक्त किया है| वह उचित ही है| यह सच है कि, आज उनकी ताकद केवल शहरी क्षेत्र और वह भी मुंबई-पुणे-नाशिक इन शहरों तक ही सीमीत है| लेकिन उसका विस्तार हो सकता है| वह कौशल्य और कुवत राज ठाकरे में है| किसी समय शिवसेना भी मुंबई-ठाणे क्षेत्र में ही मर्यादित थी| लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्र में भी उसका लक्षणीय विस्तार हुआ है| मनसे का भी विस्तार हो सकता है| आयु और युवक वर्ग राज ठाकरे के लिए अनुकूल है|

भाजपा के लिए भी सबक है| बीड जिले में गोपीनाथ मुंडे ने अपनी शक्ति प्रकट की है, यह सब ने ध्यान में लेना चाहिए| उनके परिवार में ही फूट डालने का षड्यंत्र राकॉं के अजित पवार ने रचा था और उसमें उन्हें सफलता भी मिली थी| लेकिन इस बार के जि. . और पं. . चुनाव ने मुंडे परिवार में के विद्रोहियों को उनकी जगह दिखा दी| मराठवाडा में के मुंडे की इस ताकद को भाजपा के राज्यस्तरिय नेतृत्व ने ध्यान में रखना चाहिये; और पार्टी में गुटबाजी नहीं रहेगी इसके लिए उपाय-योजना करनी चाहिए| सैद्धांतिक उद्बोधन, कार्यकर्ता और नेताओं के बीच घनिष्ठ संपर्क और संवाद व्यक्तिहित की अपेक्षा पार्टीहित श्रेष्ठ मानने की वृत्ति, इन तीन बातों पर पार्टी के रणनीतिकारों का जोर रहना चाहिए| ऐसा हुआ तो ही पार्टी सदृढ होगी|

कॉंग्रेस और राकॉं के बीच अपनी पकड मजबूत करने के लिए हमेशा ही संघर्ष चलता रहता है| इस चुनाव में राकॉं ने कॉंग्रेस से अधिक सफलता हासिल की है| कॉंग्रेस इसे सह लेगी, ऐसा लगता नहीं| केन्द्र में भी, सत्तारूढ कॉंग्रेस की नैया डगमगा रही है| तृणमूल कॉंग्रेस और द्रमुक ये सहयोगी पार्टियॉं विरोधी पार्टियों के समान बर्ताव कर रहे है| उनकी ही कतार में राकॉं भी जा बैठी, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए| अर्थात्, यह सब मार्च को उत्तर प्रदेश विधानसभा के नतीजें प्रकट होने के बाद ही स्पष्ट होगा| यहॉं हवाऐं किस दिशा में बह रही है, इतना ही सूचित किया है

- मा. गो. वैद्य
babujivaidya@gmail.com
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)