Thursday 10 November 2011

स्पर्धा : प्रधानमंत्रीपद के लिए

भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन? इस बारे में समाचरपत्र और अन्य प्रसार माध्यमों में जोरदार चर्चा चल रही है| लोकसभा का चुनाव सामान्य परिस्थिति में २०१४ के अप्रेल-मई माह में होगा| मतलब अभी ढाई वर्ष बाकी है| लेकिन अभी ही, उस चुनाव के बाद प्रधानमंत्री कौन बनेगा इसके बारे मेंअंदाज लगाना शुरू हो गया है| मानों चुनाव तीन माह के बाद ही हो रहे है! लेकिन सब, अर्थात्, प्रसार माध्यम छोड़कर, इस बात को समझ ले कि, ५-६ माह बाद होनेवाले उत्तर प्रदेश के चुनाव के परिणाम घोषित होने और उसके राजनीतिक परिणाम ध्यान में लिए बिना, २०१४ के लोकसभा के चुनाव के बाद प्रधानमंत्री कौन बनेगा, यह चर्चा केवल पंतगबाजी है| वह मनोरंजक तो है, लेकिन उसे कोई अर्थ नहीं|

कॉंग्रेस की स्थिति

एक बात सब के ध्यान में आई है कि, कॉंग्रेस की स्थिति डामाडौल है| कॉंग्रेस की स्पष्ट सत्ता केवल हरियाना, राज्यस्थान, असम और आंध्र इन चार बड़े राज्यों में ही है| महाराष्ट्र में कॉंग्रेस सत्ता में है, मुख्यमंत्री कॉंग्रेस का ही है| लेकिन उनकी सत्ता राष्ट्रवादी कॉंग्रेस की बैसाखीयों पर टिकी है| इन दो पार्टिंयों में हरदम तक्रार चलते रहती है| एक-दूसरे को मात देने का एक भी अवसर कोई गवाता नहीं| शिवसेना-भाजपा गटबंधन का भय, यह नकारात्मक कारण ही दानों कॉंग्रेस को एकत्र रहने के लिए बाध्य कर रहा है| लोकसभा में, केवल कॉंग्रेस के २०८ सदस्य है| बहुमत के लिए २७२ की आवश्यकता है| तृणमूल कॉंग्रेस, द्रमुक, राष्ट्रवादी कॉंग्रेस, और नॅशनल कॉन्फरन्स इन पार्टिंयों के समर्थन से कॉंग्रेस की सरकार चल रही है| 

सद्य: परिस्थिति

आज राज्यों में कॉंग्रेस की स्थिति क्या है? २००९ के चुनाव में कॉंग्रेस के सर्वाधिक सदस्य आंध्र प्रदेश से थे| राजशेखर रेड्डी की लोकप्रियता के कारण, वहॉं कॉंग्रेस को अभूतपूर्व सफलता मिली थी| वे राजशेखर रेड्डी आज हमारे बीच नहीं है और उनके पुत्र जगनमोहन रेड्डी ने कॉंग्रेस के विरुद्ध बगावत की है| इस बगावत के कारण कॉंग्रेस घबरा गई है| जगनमोहन रेड्डी को फंसाने के लिए, उनके प्रतिष्ठानों पर छापें डालने का, हरदम का दॉंव कॉंग्रेस के नेता खेल रहे हैं| जगनमोहन रेड्डी को जेल जाना पड़ा तो भी, वहॉं कॉंग्रेस २००९ का आँकड़ा नहीं छू पाएगी| बिहार में तो कॉंग्रेस स्थिति और भी बुरी है| हरियाणा में कॉंग्रेस की स्थिति अच्छी है| लेकिन उस राज्य में लोकसभा की केवल १० सिटें हैं| उत्तर प्रदेश से कॉंग्रेस को बहुत आशा है| कारण २००७ के चुनाव में चपत खाई कॉंग्रेस को २००९ के लोकसभा के चुनाव में कुछ सफलता मिली थी| कुल सिटों की २५ प्रतिशत सिटें उसे मिली थी| ये सिटें कॉंग्रेस को कैसी मिली इसकी चर्चा आगे है| कॉंग्रेस की सहयोगी, करुणानिधि के द्रमुक काकुछ माह पूर्व ही हुए विधानसभा के चुनाव में कैसे सफाया हुआ, यह सब को पता ही है| आज लोकसभा में द्रमुक के १८ सदस्य है| आगामी चुनाव में द्रमुक इसकी आधी संख्या कायम रख पाई तो, उसने अच्छी सफलता पाई, ऐसा कहा जा सकता है| लेकिन ऐसी कोई संभावना नहीं है| इस कारण तामिलनाडु से भी कॉंग्रेस को बहुत आशा नहीं है| लोकसभा में कॉंग्रेस के २०८ सदस्य है, इनमें से कम से कम ५० तो घटाने पड़ेगे| कॉंग्रेस की ताकद १६० से आगे जाने की नहीं| सारांश यह कि, २०१४ में कॉंग्रेस सत्ता में नहीं आ सकती|

भाजपा को आशा

अर्थात् प्रमुख विरोधी पार्टी भाजपा को आशा है| हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तसीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक इन राज्यों में उसकी अपने बुत्ते पर सरकारे है, तो पंजाब और बिहार, इन दो राज्यों में वह क्रमश: अकाली दल और जद (यु) की सहयोगी है| आज लोकसभा में उनके केवल ११६ सदस्य है| लेकिन २००३ तक यह संख्या १८२ थी| राजनीतिक निरीक्षकों का अंदाज है कि, २०१४ में भाजपा लोकसभा में २०० की संख्या पार कर जाएगी| आज मित्र पक्षों के साथ भाजपा के नेतृत्व में के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के केवल १५६ सदस्य है| नये सिरे से फिर अद्रमुक उनके साथ आएगी| १९९८ तक वह भाजपा के नेतृत्व में के गठबंधन का मुख्य घटक थी ही| तृणमूल कॉंग्रेस या नॅशनल कॉन्फरन्स, केन्द्र में सत्ता में कौन है, यह देखकर अपनी भूमिका निश्‍चित करते है| भाजपा को उनकी मदद अपेक्षित है| विद्यमान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के जद (यु) के २० सदस्य है| इस संख्या में अच्छी वृद्धि होने की संभावना है|

नेतृत्व दारिद्र्य

इसी कारण, भाजपा में से कौन प्रधानमंत्री बनेगा, इसकी जोरदार चर्चा प्रसार माध्यमों में चल रही है| इसका एक और कारण यह भी है कि, प्रधानमंत्रीपद सम्हालने की क्षमता रखनेवाले अनेक नेता भाजपा में है| कॉंग्रेस में केवल एक ही नाम सबसे आगे है; और वह है राहुल गांधी| कॉंग्रेस पार्टी में नेतृत्व दारिद्र्य इतना है कि, अन्य किसी का नाम भी नहीं लिया जाता| मनमोहन सिंह इसके बाद प्रधानमंत्री नहीं बनेगे, यह पत्थर पर की लकीर है| दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल के नाम तो विचार करने के योग्य भी नहीं| चिदंबरम् में योग्यता है, लेकिन तामिलनाडू में की आज की स्थिति में उनका चुनाव जितना ही कठिन है| २००९ के चुनाव में वे चालाकी कर जीते थे, ऐसा खुल्लमखुल्ला आरोप है| अब शेष रहे केवल प्रणव मुकर्जी| उनमें योग्यता है| लेकिन वे गांधी परिवार के विश्‍वासपात्र नहीं है| फिर बचते है दो नाम १) श्रीमती सोनिया गांधी और २) राहुल गांधी| मतलब माता और पुत्र; और माता ने पुत्र को सामने किया है| वे ‘युवराज’ के रूप में ही जाने जाते है| और सब स्तर के कॉंग्रेस के नेता भी उनकी ओर भावी प्रधानमंत्री के रूप में ही देखते है| श्रीमती सोनिया गांधी ने भी वैसे संकेत दिये है| शस्त्रक्रिया के लिए वे विदेश गई तब, पार्टी का काम देखने के लिए जो नेतृचतुष्टय उन्होंने बनाया, उसमें राहुल गांधी प्रमुख थे| बाकी अँटनी, द्विवेदी, प्रभृति तीन सदस्य एक उपचार मात्र था| व्यक्ति केन्द्रित या वंश केन्द्रित व्यवस्था में, ऐसी स्थिति निर्माण होना अटल होता है| 
भाजपा में ऐसा नेतृत्व-दारिद्र्य नहीं| प्रधानमंत्रीपद की योग्यता और क्षमता रखनेवाले अनेक नाम है| लालकृष्ण अडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह और नीतीन गडकरी यह नाम सहज ही सामने आते है| लेकिन आज अडवाणी, मोदी और गडकरी यह तीन नाम विशेष चर्चा में है| श्रीमती सुषमा स्वराज का नाम क्यों नहीं आगे आता, यह आश्‍चर्य है| यह नाम प्रमुखता से सामने आना आवश्यक है| इसके लाभ भी है|

नीतीन गडकरी

इस सूची में नीतीन गडकरी का नाम शामिल करने पर अनेकों को आश्‍चर्य होगा| लेकिन आश्‍चर्य करने का कारण नहीं| १५ दिसंबर २०१० के ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’में, ‘रेस फॉर क्राऊन’ (मुकुट के लिए स्पर्धा - अर्थात् प्रधानमंत्री के मुकुट के लिए) इस शीर्षक से एक समाचार स्वरूप लेख प्रकाशित हुआ है| मतलब ९ माह पूर्व वह लेख प्रकाशित हुआ है| उसके बाद के नौ माह में गडकरी का आलेख काफी उपर गया होगा| इस लेख के लेखक तुहिन सिन्हा कहते है कि, ‘‘पहले की संशयात्म परिस्थिति (सिनिसिझम्) में से, गडकरी अपनी पार्टी को विश्‍वसनीय आशावाद (प्लॉजिबल् ऑप्टिमिझम्) की ओर ले गए है| जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, उन्हें हिंदुत्ववादी होने के कारण नहीं, उनके उत्तम प्रशासन (गुड गव्हर्नन्स) के कारण सराहा जा रहा है| और गडकरी का जोर तो हरदम उत्तम प्रशासन पर रहा है|’’

लालकृष्ण अडवाणी

भावी प्रधानमंत्री के लिए अडवाणी का नाम भी लिया जाता था| उनकी संकल्पित रथ यात्रा, उनकी प्रधानमंत्रीपद की इच्छा और तैयारी का प्रतीक है, ऐसा समाचरपत्रों ने ठोक दिया है| अडवाणी ने स्वयं ही उनके मुँह बंद किए, यह अच्छा हुआ| २१ सितंबर को अडवाणी जब नागपुर में आए थे, तब उन्होंने ही बताया कि, ‘‘मुझे आज तक पार्टी और राष्ट्र की ओर से प्रधानमंत्रीपद से भी बहुत अधिक मिला है|’’ इसका अर्थ वे प्रधानमंत्री की स्पर्धा में नहीं, ऐसा निकालना ही योग्य होगा| इसके आलवा वे आज ही ८४ वर्ष के है| ८७ वर्ष की आयु में वे प्रधानमंत्री बनने के उत्सुक होगे, ऐसा समझना उनके लिए अन्यायकारक होगा| कुछ समाचारपत्रों ने ठोका है कि, संघ ने उन्हें परावृत्त किया| हमारे जैसे संघ के पुराने कार्यकर्ता, जो संघ की रीत जानते है, उन्हें निश्‍चित पता है कि, संघ व्यक्ति के बारे में निर्णय नहीं करता| वह काम संबंधित संगठन का होता है| २०१४ में अपना संसदीय नेता कौन होगा, यह भाजपा ही निश्‍चित करेगी|

नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी का नाम जोर-शोर से सामने आ रहा है या उद्देश कोई भी हो, सामने लाया जा रहा है, ऐसा भी कहा जा सकता है| उन्होंने ढाई या तीन दिन का अनशन क्या कर लिया, उन्हें एकदम भाजपा के २०१४ में के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया गया! मोदी ने ही इसके लिए प्रयास किए, ऐसा बतानेवाले भी मुझे मिले| ये लोग दिल्ली स्थित ही है| अकाली दल के प्रमुख प्रकाशसिंग बादल और जयललिता के दो प्रतिनिधि उस अनशन के समर्थन में उपस्थित थे और उन्हें मोदी ने ही निमंत्रित किया था, ऐसा इन लोगों का कहना है| सही में मोदी ने ही उन्हें बुलाया होगा, तो केवल अकाली दल या अद्रमुक को ही बुलाया होगा ऐसा नहीं| भाजपा के सब विद्यमान और संभाव्य मित्रपार्टिंयों को भी वह निमंत्रण गया ही होगा| लेकिन, मेरे मतानुसार यह शंकालुओं की शंकाएँ हो सकती है| इसका अर्थ मोदी को प्रधानमंत्री बनने में रस नहीं, ऐसा करने का कारण नहीं| वे निश्‍चित ही महत्त्वाकांक्षी है और प्रधानमंत्री बनना उन्हें पसंद भी होगा, उसके लिए वे प्रयास भी करेगे| लेकिन उनके जैसा चाणाक्ष राजनीतिज्ञ इतने जल्दी अपना मनोरथ ऐसा दिखावा कर प्रकट करेगा, ऐसा नहीं लगता|
‘भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी’ इस चर्चा की शुरूवात की अमेरिका ने, मतलब अमेरिका की सरकार ने; और उसी जानकारी का आधार लेकर विकीलीक्स ने| अमेरिका के प्रशासन में ‘कॉंग्रेसनल रीसर्च सर्व्हिस’ नाम की एक संस्था है| ‘कॉंग्रेसनल’ मतलब अमेरिका के संसद की समझे| अमेरिका में के सर्वोच्च विधी मंडल का नाम ‘कॉंग्रेस’ है| उससे यह संस्था संलग्न है| अर्थात् यह संस्था केवल जानकारी देती है; निर्णय सरकार करती है| इस संस्था की जानकारी में कहा गया है कि, ‘‘प्रधानमंत्रीपद के भाजपा के संभाव्य उम्मीदवारों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम है| उन्होंने अपने राज्य का लक्षणीय विकास किया है|’’ अपने इस रिपोर्ट का आधार वृत्तपत्रीय समाचार है, ऐसा यह रिपोर्ट मान्य करता है और इसके लिए ‘आऊट लुक’ इस भारत में भरपूर प्रसार के साप्ताहिक के ५ अप्रेल के अंक मेंे के संपादकीय और ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ इस अमेरिका में के विख्यात समाचरपत्र के २३ फरवरी के अंक में के संपादकीय का संदर्भ देता है| 

मोदी प्रशंसा

मोदी की प्रशंसा में यह रिपोर्ट कहता है कि, ‘‘मोदी के गुजरात ने परिणामकारक प्रशासन और मनोवेधक विकास का उदाहरण प्रस्तुत किया है| उन्होंने लालफीत की रूकावट दूर कर और भ्रष्टाचार को नियंत्रण में रख कर आर्थिक प्रक्रिया को निर्बाध गति दी| उन्होंने सड़क और बिजली निर्माण के क्षेत्र में भरपूर निवेश कर राज्य का विकास दर ११ प्रतिशत से उपर पहुँचा दिया|’’ इस जानकारी के लिए इस रिपोर्ट ने ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ का आधार लिया है| 
विकीलीक्स के केबल में बहुत ही मनोरंजक या हास्यास्पद कहने जैसी जानकारी है| उसके अनुसार, सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत ने अडवाणी या मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए समर्थन दिया है| २००९ के जनवरी माह की केबल बताती है कि, भारत के उद्योगपति - जिनमें अनिल अंबानी और सुनील मित्तल का समावेश है - को मोदी प्रधानमंत्री बने, ऐसा लगता है| विकीलीक्स, अपने २००९ के केबल में, अनेक राजनीतिज्ञ, पत्रकार और वृत्तविश्‍लेषकों के मुलाक़ात के आधार पर मोदी बहुत ही लोकप्रिय और ध्रविकरण कर सकने में सक्षम नेता है, ऐसा कहती है| लेकिन आखिर में यह भी बताती है कि, भारतीय चुनाव में के जातीय, प्रादेशिक और व्यक्तिगत कारण ध्यान में लेते हुए मोदी प्रधानमंत्री बनना बहुत ही कठिन है| 
इस रिपोर्ट में राहुल गांधी का भी उल्लेख है| गांधी परिवार के इस युवक को कॉंग्रेस अपने प्रधानमंत्रीपद के उम्मीदवार के रूप में आगे करेगी| लेकिन चुनाव में की उसकी सफलता पर, प्रमाद करने के बारे में की उसकी प्रसिद्धि ने प्रश्‍नचिन्ह निर्माण किया है|

महत्त्व का मुद्दा

मेरे मन में प्रश्‍न निर्माण होता है कि, अमेरिका को मोदी के प्रति इतना प्रेम क्यों उमड़ा? क्या सही में उस देश को, मोदी या भाजपा का अन्य नेता प्रधानमंत्री बने, ऐसा लगता होगा? भारतीय राजनीति का बारीकी से अभ्यास करनेवाले एक जानकार राजनीतिज्ञ - जो भाजपा से संलग्न है - ने मेरा आश्‍चर्य दूर किया| उन्होंने बताया कि, अमेरिका को, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, ऐसा नहीं लगता| मोदी या भाजपा का कोई भी नेता प्रधानमंत्री बने, ऐसा अमेरिका को लगना संभव ही नहीं| उन्हें ऐसा ही लगता है कि, प्रधानमंत्री कॉंग्रेस पार्टी का ही बने| राहुल गांधी जैसी अपरिपक्व व्यक्ति उन्हें अधिक पसंद होगी| लेकिन इसके लिए उन्हें भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी ही उम्मीदवार चाहिए| वे भाजपा के उम्मीदवार होगे तब ही, संपूर्ण मुस्लिम और ईसाई व्होट बँक कॉंग्रेस के पीछे खडी रह सकती है| इस बात का अनुभव उन्होंने उत्तर प्रदेश में लोकसभा के चुनाव के समय लिया है| २००७ के चुनाव में, विधानसभा में ४०५ में केवल २०-२२ सदस्य होनेवाली कॉंग्रेस २००९ में लोकसभा की ८१ में से २० सिटें जीत पाई, इसका रहस्य, संगठित मुस्लिम व्होट बँक ने कॉंग्रेस को दिये एकजूट समर्थन में है| विधानसभा के चुनाव के समय, मुस्लिम व्होट, मायावती की बसपा, मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को मिले थे| इन दो दलों में वह विभाजित हुए थे| लेकिन २००९ के लोकसभा के चुनाव में, ये व्होट भाजपा के उम्मीदवार के विरुद्ध एकजूट हुए; और भाजपा को ८१ में से केवल १० सिटें मिली| केवल १० वर्ष पूर्व १९९९ के लोकसभा के चुनाव में भाजपा को ५२ सिटें मिली थी| भाजपा को पराभूत करने में, देश में के बहुसंख्य मुसलमान, पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्र और अमेरिका को भी रस है| यह पराभव मुस्लिम मतों के भाजपा के विरुद्ध की एकजुटता में निहित है, ऐसा उनका आकलन है| आझमगढ़ इस मुस्लिमों के कट्टरवादियों के अड्डे को दिग्विजय सिंह ने बारबार भेट देना और कट्टरवादियों का समर्थन करना यह इस व्यूहनीति का ही भाग है, ऐसा मानना चाहिए| कॉंग्रेस का पहला लक्ष्य २०१२ में के उत्तर प्रदेश के विधानसभा के चुनाव है| उसे अब पॉंच-छ: माह ही शेष होने के कारण, मोदी ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते है, ऐसा ढ़िंढोरा पिटकर, मुस्लिम मत, विधानसभा के चुनाव में भी कॉंग्रेस की ओर पलटाने की विचारपूर्वक बनाई गई योजना है| 
सब को पता है कि, बसपा या सपा राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विकल्प नहीं हो सकते| विकल्प केवल कॉंग्रेस ही है| और आज वह पस्त हो चुकी है| उसे इस स्थिति से उबारने के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में के कॉंग्रेस परिणाम जनता को आशावादी लगने चाहिए; इसके लिए मुस्लिम व्होट बँक, अपने आपसी मतभेद भुलाकर, कॉंग्रेस के समर्थन में खड़ी रहनी चाहिए| उन मतों का विभाजन होकर भाजपा को उसका लाभ नहीं मिलना चाहिए, इसलिए मोदी के स्तोत्र गाए जा रहे है| मोदी जिस पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री बन सकते है, उसे विरोध करने के लिए मुस्लिमों के मत कॉंग्रेस को मिलेगे, ऐसा यह आशावाद है| इसके साथ ही जदयु जैसी पार्टिंयॉं भी भाजपा से दूर होगी, ऐसी आशा भी उनके मन में है| 
इस विश्‍लेषण पर कितना विश्‍वास रखें, यह हर किसी का अपना विषय है| तथापि, मोदी के प्रधानमंत्री बनने में अमेरिका को रस होगा या राहुल गांधी के उस उच्च पद पर आसीन होने में रस होगा, इसके उत्तर में दो मत होने का कारण नहीं, ऐसा लगता है| आखिर अपनी रणनीति भाजपा ने ही तय करनी है और आज भाजपा में उस उच्च अधिकार के पद के लिए अनेक लायक उम्मीदवार है, ऐसी उनकी भूमिका दिखाई देती है| वह योग्य ही है, ऐसा कहना चाहिए|

- मा. गो. वैद्य, नागपुर

(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)
                  

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